Friday, March 26, 2021

विदेश मंत्री एंटनी जे. ब्लिंकन “अमेरिका के गठबंधनों की पुनर्पुष्टि और पुनर्संकल्पना”

Department of State United States of America

अनुवादअमेरिकी विदेश विभाग केसौजन्य से



विदेश विभाग
प्रवक्ता का कार्यालय
मार्च 24, 2021
विदेश मंत्री एंटनी जे. ब्लिंकन का संबोधन

नैटो मुख्यालय सभागार

ब्रसेल्स, बेल्जियम

 

विदेश मंत्री एंटनी जे. ब्लिंकन: नमस्कार।

कुछ सप्ताह पूर्व, विदेश मंत्री का पद संभाले कुछ ही दिन हुए थे, जब मैंने अमेरिकी जनता से सीधे बात की। मैंने कहा कि मेरा पहला काम ये सुनिश्चित करना है कि अमेरिका की विदेश नीति से उनका भला होता हो — कि यह उनके जीवन को अधिक सुरक्षित बनाए, उनके परिवारों और समुदायों के लिए अवसर पैदा करे, और उनके भविष्य को अधिकाधिक प्रभावित करने वाली वैश्विक चुनौतियों से निपटे।

और मैंने कहा कि हम अमेरिकी लोगों के लिए ये सब सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण तरीक़ा है दुनिया भर में अपने गठबंधनों और साझेदारियों की पुनर्पुष्टि करना और उनमें नई जान फूंकना।

इसीलिए मैं इस सप्ताह ब्रसेल्स आया हूँ। मैं अब नैटो मुख्यालय से आपसे बात कर रहा हूं, जो लगभग 75 वर्षों से यूरोप और उत्तर अमेरिका की सुरक्षा और स्वतंत्रता की रक्षा कर रहा संधि गठबंधन है।

इस समय, अमेरिकियों की कुछ चीज़ों पर असहमति है, लेकिन गठबंधनों और साझेदारियों का महत्व उनमें शामिल नहीं है। शिकागो काउंसिल ऑन ग्लोबल अफ़ेयर्स के हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, दस में से नौ अमेरिकी मानते हैं कि हमारे गठबंधनों को क़ायम रखना हमारी विदेश नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने का सबसे प्रभावी तरीका है। दस में से नौ की राय। यह समझना मुश्किल नहीं है कि ऐसा क्यों है। वे हमारे सामने मौजूद ख़तरों को देख रहे हैं — जैसे जलवायु परिवर्तन, कोविड-19 महामारी, आर्थिक असमानता, अधिकाधिक आक्रामक चीन — और वे जानते हैं कि अमेरिका के लिए साझेदारों के साथ मिलकर इनका सामना करना इनसे अकेले निपटने की कोशिश करने की तुलना में कहीं बेहतर होगा। और हमारे सभी सहयोगी देशों की भी यही राय होगी।

आज दुनिया दशकों पूर्व की तुलना में बहुत अलग दिखती है, जब हमने अपने कई गठबंधनों की स्थापना की थी — या चार साल पहले की तुलना में भी अलग है। चुनौतियां कई गुना बढ़ गई हैं। प्रतिस्पर्धा कड़ी हो गई है। ताक़त के समीकरण बदल गए हैं। हमारे गठबंधनों पर भरोसा — एक दूसरे पर भरोसा और हमारी प्रतिबद्धताओं की ताक़त में भरोसा — कम हुआ है। गठबंधनों में और यहां तक कि अपने गठबंधनों के भीतर भी, सामने मौजूद ख़तरों और उनका सामना करने के तरीक़ों को लेकर हमारे बीच हमेशा सहमति नहीं होती है। लोकतंत्र और मानवाधिकारों के हमारे साझा मूल्यों को चुनौती दी जा रही है — न केवल हमारे देशों के बाहर से, बल्कि भीतर से भी। और नए ख़तरे हमारे द्वारा उनके खिलाफ़ रक्षा क्षमताएं निर्मित करने के प्रयासों को पीछे छोड़ रहे हैं।

फिर भी, इऩमें से कोई भी बात इस तथ्य को नहीं बदल सकती है कि हमें गठबंधनों की आवश्यकता है — पहले के समान ही या अब शायद पहले से भी अधिक। हमारे सामने चुनौती है, इन गठबंधनों को अनुकूलित और नवीकृत करने की, ताकि वे आज की चुनौतियों को पूरा कर सकें, और हमारे लोगों के लिए लाभदायक साबित होते रहें, जैसा कि अतीत में रहे हैं।

आज, मैं इस बात की चर्चा करूंगा कि ये कैसा किया जा सकता है।

मैं सबसे पहले उन साझा ख़तरों को परिभाषित करूंगा, जिनका कि हम सामना कर रहे हैं। उसके बाद, मैं इस बात की चर्चा करूंगा कि अपने गठबंधनों की पुनर्पुष्टि करने और उनमें नई जान फूंकने के लिए हमें क्या करने की आवश्यकता है, ताकि ये न केवल इन ख़तरों से बचाव कर सकें, बल्कि हमारे साझा हितों और मूल्यों की रक्षा भी कर सकें। और अंत में, मैं बताऊंगा कि हमारे सहयोगी देश अमेरिका से क्या उम्मीद कर सकते हैं, और बदले में हम अपने सहयोगी देशों से क्या अपेक्षा करते हैं।

सबसे पहले हमें वर्तमान की सर्वाधिक तात्कालिक चुनौतियों को पहचानने की ज़रूरत है।

जैसा कि मुझे नज़र आता है, इसकी तीन श्रेणियां हैं।

पहली श्रेणी दूसरे देशों से सैन्य ख़तरे की है। हम इसे चीन द्वारा नौवहन की स्वतंत्रता को ख़तरे में डालने, दक्षिण चीन सागर का सैन्यीकरण करने तथा पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों को अधिकाधिक परिष्कृत सैन्य क्षमताओं से लक्षित करने की कोशिशों में देख सकते हैं। बीजिंग की सैन्य महत्वाकांक्षाएं साल-दर-साल लगातार बढ़ रही हैं। आधुनिक तकनीकों की वास्तविकताओं के साथ मिलाकर देखें, तो जो चुनौतियां पहले आधी दुनिया की दूरी पर दिखती थीं, अब दूरस्थ नहीं रह गई हैं। हम इसे रूस की नई सैन्य क्षमताओं और रणनीतियों में भी देख सकते हैं जो उसने हमारे गठबंधनों को चुनौती देने तथा हमारी सामूहिक सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली नियम आधारित व्यवस्था को कमज़ोर करने के लिए विकसित की हैं। इनमें पूर्वी यूक्रेन में मास्को की आक्रामकता; बाल्टिक एवं काला सागर, पूर्वी भूमध्यसागर और आर्कटिक क्षेत्रों में उसकी बढ़ी सैन्य उपस्थिति, व्यापक युद्धाभ्यास और डराने-धमकाने वाली गतिविधियां; परमाणु क्षमताओं का आधुनिकीकरण; और उसका नैटो की ज़मीन पर अपने आलोचकों के खिलाफ़ रासायनिक हथियारों का उपयोग करना शामिल हैं।

और, चीन एवं रूस के अलावा ईरान और उत्तर कोरिया जैसे क्षेत्रीय किरदार परमाणु और मिसाइल क्षमताओं पर काम कर रहे हैं जिनसे अमेरिका के सहयोगी देशों और साझेदारों को ख़तरा है।

दूसरी श्रेणी इनमें से कई देशों से कई ग़ैर-सैन्य ख़तरों की है — तकनीकी, आर्थिक और सूचना संबंधी रणनीतियां जो हमारी सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं। इनमें हमारे लोकतंत्रों में अविश्वास को बढ़ावा देने के लिए दुष्प्रचार अभियानों के इस्तेमाल और भ्रष्टाचार को बढ़ाना देना, तथा हमारे अहम बुनियादी ढांचे को निशाना बनाने और बौद्धिक संपदा की चोरी के लिए साइबर हमले करना शामिल हैं। चीन द्वारा खुलेआम ऑस्ट्रेलिया पर आर्थिक दबाव बनाने से लेकर रूस द्वारा चुनावों तथा सुरक्षित एवं प्रभावी टीकों पर भरोसा ख़त्म करने के लिए दुष्प्रचार के इस्तेमाल तक — इन आक्रामक कार्यों से न केवल हमारे देशों को, बल्कि हमारे साझा मूल्यों को भी ख़तरा है।

और तीसरी श्रेणी जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 जैसे वैश्विक संकटों की है। ये किन्हीं सरकारों द्वारा पेश ख़तरे नहीं हैं — ये वैश्विक हैं। उच्च तापमान, समुद्र का बढ़ता जलस्तर और अधिक व्यापक तूफ़ान सैन्य तैयारियों से लेकर मानव प्रवासन पैटर्न और खाद्य सुरक्षा तक, सब कुछ को प्रभावित करते हैं। जैसा कि कोविड-19 महामारी ने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है, हमारी स्वास्थ्य सुरक्षा परस्पर संबद्ध है, और इसे हमारी सबसे कमज़ोर कड़ी के बराबर सक्षम ही माना जा सकता है।

हम वैश्विक आतंकवाद का भी सामना कर रहे हैं, जो अक्सर इन सभी श्रेणियों के भीतर असर करता है। भले ही हमने आतंकवाद के ख़तरे को काफी कम कर दिया हो, यह अब भी एक बड़ा ख़तरा है, ख़ासकर जब आतंकवादी और उनके संगठनों को सरकारों से समर्थन और सुरक्षित पनाहगाह मिल रहे हों, या वे शासनरहित इलाक़ों में सुरक्षित आश्रय पा रहे हों।

जब हमारे गठबंधन बने थे, तब इनमें से अनेक चुनौतियां हमारे लिए उतनी महत्वपूर्ण नहीं थीं। इनमें से कुछेक का तो तब अस्तित्व भी नहीं था। लेकिन हमारे गठबंधनों की असल ताक़त इसी में है: इनमें परिस्थितियों से सामंजस्य की – नई उभरती चुनौतियों के अनुरूप बदलते रहने की गुंजाइश रखी गई थी।

तो इस बात पर ग़ौर करते हैं कि हम आज इनमें किस तरह बदलाव कर सकते हैं।

सर्वप्रथम, हमें अपने गठबंधनों और उन्हें क़ायम रखने वाले साझा मूल्यों के प्रति फिर से प्रतिबद्धता व्यक्त करनी होगी।

जब 9/11 को अमेरिका पर हमला हुआ, तो हमारे नैटो सहयोगी देशों ने तुरंत और सर्वसम्मति से संधि के अनुच्छेद 5 — एक पर हमला यानि सभी पर हमला — को लागू कर दिया था। अभी तक इतिहास का ये एकमात्र मौक़ा है जब अनुच्छेद 5 को लागू किया गया — और ऐसा अमेरिका की रक्षा के लिया किया गया था। हम इसे कभी नहीं भूलेंगे। और हमारे सहयोगी आज हमसे भी यही उम्मीद कर सकते हैं। जैसा कि राष्ट्रपति बाइडेन ने पिछले महीने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में कहा था, आपके साथ हमारी अटल प्रतिज्ञा है: अमेरिका नैटो के लिए, अनुच्छेद 5 सहित, पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।

इस प्रतिज्ञा को मैं इस सप्ताह नैटो के अपने सहयोगी देशों के समक्ष फिर से दोहरा रहा हूं।

और, रक्षा मंत्री ऑस्टिन और मैंने हमारे सहयोगी देशों जापान और दक्षिण कोरिया से भी यही प्रतिबद्धता व्यक्त की है, जिनके साथ हमने पिछले दिनों बोझ साझा करने के समझौतों से संबंधित वार्ताएं संपन्न की हैं जो वर्षों तक एक मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने में मददगार होंगे।

हमारे गठबंधन साझा मूल्यों की रक्षा के लिए स्थापित किए गए थे। इसलिए हमारी प्रतिबद्धता को नवीकृत करने के लिए उन मूल्यों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की नींव के प्रति फिर से प्रतिबद्धता व्यक्त करने की आवश्यकता है जिनकी कि हम रक्षा करने की प्रतिज्ञा करते हैं: एक मुक्त खुली नियम-आधारित व्यवस्था। ये एक कठिन चुनौती है है। वस्तुतः दुनिया का हर लोकतंत्र, अमेरिका समेत, इस समय चुनौतियों का मुक़ाबला कर रहा है। हमारा सामना गहरी असमानताओं, संस्थागत नस्लवाद और राजनीतिक ध्रुवीकरण से है, जिनमें से प्रत्येक हमारे लोकतंत्र को कमज़ोर करता है।

ये हम सभी का कर्तव्य है कि हम हमेशा से हमारी व्यवस्था की सबसे बड़ी ताक़त रहे अपने नागरिकों पर, तथा समाज और संस्थानों को बेहतर बनाने की उऩकी क्षमता पर अपना भरोसा रखें। हमारे लोकतंत्रों के लिए सबसे बड़ा ख़तरा ये नहीं है कि वे त्रुटिपूर्ण हैं — वे हमेशा से ऐसा रहे हैं। सबसे बड़ा ख़तरा है कि उन दोषों को ठीक करने की लोकतंत्र की क्षमता — एक अधिक आदर्श परिसंघ बनाने की हमारी संस्थापक प्रतिबद्धता के अनुपालन — से हमारे नागरिकों का विश्वास उठ जाना। अपनी कमियों का खुलकर सामना करने की हमारी क्षमता और इच्छा — न कि उनके मौजूद नहीं होने का दिखावा करना, उन्हें अनदेखा करना, उन्हें नज़रों से दूर रखना — ही लोकतंत्र को तानाशाही से अलग करती है।

हमें अपने गठबंधनों की बुनियाद में मौजूद मूल्यों को लेकर — दुनिया भर में लोकतंत्र का दायरा सिमटने के खिलाफ़ — एक-दूसरे का साथ भी देना होगा। जब कोई देश लोकतंत्र और मानवाधिकारों से पीछे हटता हो तो हम सभी को आवाज़ उठानी चाहिए। लोकतंत्र यही तो करता है: हम चुनौतियों से खुलकर निपटते हैं। हमें लोकतंत्र के सुरक्षा तंत्रों — जैसे एक मुक्त और स्वतंत्र प्रेस; भ्रष्टाचार विरोधी निकाय; और क़ानून के शासन की रक्षा करने वाले संस्थान — को मज़बूत करके पीछे हुए देशों को भी सही दिशा में वापस लौटने में मदद करनी चाहिए।

यह भी हमारे गठबंधनों के प्रति फिर से प्रतिबद्धता जताने से संबंधित है।

दूसरी बात, हमें अपने गठबंधन का आधुनिकीकरण करना होगा।

यह एक मज़बूत और विश्वसनीय निरोधक बनाए रखने के लिए हमारी सैन्य क्षमताओं और तैयारियों में सुधार से शुरू होता है। उदाहरण के लिए, हमें ये सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारा रणनीतिक परमाणु निरोधक सुरक्षित, संरक्षित और प्रभावी बना रहे, खासकर रूस के आधुनिकीकरण के मद्देनज़र। हमारे सहयोगियों के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को मजबूत और विश्वसनीय रखने के वास्ते यह महत्वपूर्ण है, भले ही हम अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा में परमाणु हथियारों की भूमिका को कम करने के लिए भी कदम उठा रहे हैं। हम हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जटिल सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए क्षेत्र के अपने  सहयोगियों के साथ भी काम करेंगे।

हमें आर्थिक, तकनीकी और सूचना के क्षेत्रों में ख़तरों से निपटने के लिए अपनी क्षमता का विस्तार करना होगा। और हम केवल रक्षात्मक नहीं रह सकते — हमें एक सकारात्मक रवैया अपनाना होगा।

हमने देखा है कि कैसे बीजिंग और मॉस्को महत्वपूर्ण संसाधनों, बाजारों और प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता का अधिकाधिक उपयोग हमारे सहयोगियों पर दबाव बनाने और हमारे बीच मतभेद पैदा करने के लिए कर रहे हैं। बेशक, प्रत्येक राष्ट्र का निर्णय ख़ुद का होता है, लेकिन हमें आर्थिक दबाव को अन्य प्रकार के दबाव से अलग नहीं देखना चाहिए। जब हम में से किसी एक पर दबाव बनाया जाता हो, तो हमें सहयोगी देशों के रूप में प्रतिक्रिया देनी चाहिए और अपनी भेद्यता कम करने के लिए ये सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे के साथ, हमारे प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों के मुक़ाबले, अधिक एकीकृत हों। इसका मतलब है अत्याधुनिक नवोन्मेष विकसित करने के लिए परस्पर सहयोग करना; यह सुनिश्चित करना कि हमारी महत्वपूर्ण सप्लाई चेन सुदृढ़ हो; उभरती प्रौद्योगिकियों के नियमन के लिए मानदंडों और मानकों को स्थापित करना; नियम तोड़ने वालों के लिए उनके कृत्य की क़ीमत सुनिश्चित करना। इतिहास गवाह है कि ऐसा करने पर अधिकाधिक देश एकजुट प्रयासों से निर्मित हमारी खुली और सुरक्षित व्यवस्थाओं को अपनाएंगे।

और हमें अंतरराष्ट्रीय ख़तरों — विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 जैसी महामारी — से निपटने की अपनी क्षमता का विस्तार करना चाहिए। ये चुनौतियां इतनी विशाल हैं — और इनका सामना करने हेतु जरूरी उपाय इतने दूरगामी हैं — कि हमें इनसे निपटने के उद्देश्य को लगभग उन सभी कार्यों के साथ एकीकृत करना होगा जो हम साझेदारों के एक व्यापक दायरे में करते हैं।

तीसरी बात, हमें सहयोगी देशों और साझेदारों के साथ विस्तृत गठबंधन निर्मित करने होंगे।

अक्सर हम अपने गठबंधनों और साझेदारियों को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। उन्हें साथ रखने के लिए हम पर्याप्त  प्रयास नहीं करते हैं। लेकिन हमें प्रयास करने चाहिए। क्योंकि परस्पर पूरक शक्तियों और क्षमताओं वाले देश साझा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जितना एकजुट हो सकें, उतना बेहतर।

उन देशों के समूह के पीछे यही विचार है जिन्हें कि हम "क्वाड" कहते हैं — ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका। राष्ट्रपति बाइडेन ने हाल ही में क्वाड के पहले शीर्षस्तरीय शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की थी। हम एक मुक्त, खुले, समावेशी और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र की दृष्टि साझा करते हैं, जो दबावों से मुक्त हो और लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित हो। साथ मिलकर हम एक अच्छी टीम साबित होते हैं। और हमारा सहयोग पूर्व और दक्षिण चीन सागरों में सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा सुरक्षित, सस्ती और प्रभावी वैक्सीनों के उत्पादन और उनकी भेदभाव रहित उपलब्धता के लिए समानांतर प्रयासों को मज़बूत करेगा।

बढ़ता नैटो-यूरोपीय संघ सहयोग एक और उदाहरण है। साइबर सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अधिक सहयोग से हमें वर्तमान दौर के ख़तरों के खिलाफ़ मज़बूत उपायों की व्यवस्था करने और तैयारियों में मदद मिलेगी। जब हम अपने मूल्यों के लिए खड़े होते हैं तो यह हमें मज़बूत भी बनाता है।

आइए उन प्रतिबंधों पर विचार करें जो हाल ही में अमेरिका ने कनाडा, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने साथ मिलकर, शिनजियांग में उइगरों के खिलाफ़ हो रहे अत्याचार से जुड़े लोगों पर लगाए हैं। चीन द्वारा इसकी प्रतिक्रिया में यूरोपीय संसद के सदस्यों और यूरोपीय संघ की राजनीतिक और सुरक्षा समिति, शिक्षाविदों और थिंक टैंकों पर लगाए गए प्रतिबंधों से यह और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम अपने सिद्धांतों पर अटल और एकजुट रहें, अन्यथा इससे धौंस जमाने का रवैया कारगर होने का संदेश जाने का ख़तरा है। इसमें यूरोप में अपने ग़ैर-नैटो साझेदारों के साथ एकजुटता दिखाना भी शामिल है, जिनमें से कई गठबंधन के अग्रिम मोर्चों पर हमारे साथ निरंतर मज़बूती से खड़े हैं।

और हम राष्ट्रीय सरकारों से परे निजी क्षेत्र, सिविल सोसाइटी, परोपकारी संस्थाओं, नगरों और विश्वविद्यालयों तक पहुंचेंगे। वैश्विक संसाधनों — वे संसाधन जिनका उपयोग करने और लाभांवित होने का सभी को अधिकार है, और जिनका अब हमारे विरोधियों द्वारा अतिक्रमण किया जा रहा है — की रक्षा के लिए विविध और व्यापक सहयोग आवश्यक है।

उदाहरण के लिए 5जी पर विचार करें, जहां चीन की टेक्नोलॉजी के साथ उसके निगरानी तंत्र की दखल का गंभीर जोख़िम जुड़ा हुआ है। हमें स्वीडन, फ़िनलैंड, दक्षिण कोरिया और अमेरिका जैसे देशों की टेक्नोलॉजी कंपनियों को साथ लाना चाहिए और सुरक्षित एवं भरोसेमंद विकल्प को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक और निजी निवेश का उपयोग करना चाहिए। हमने उन देशों के साथ संबंधों को विकसित करने में दशकों बिताए हैं जो दुनिया के हर हिस्से में हमारे मूल्यों को साझा करते हैं। हमने इन साझेदारियों में इसी कारण से इतना निवेश किया है — और इसलिए हम इस तरह की नई चुनौतियों को हल करने के लिए अभिनव तरीके से एक साथ आ सकते हैं।

किसी को यदि संदेह है कि इस तरह एक साथ काम करके हम क्या कुछ हासिल कर सकते हैं, तो मैं वैज्ञानिकों द्वारा अभूतपूर्व सहयोग का उदाहरण देना चाहूंगा जिन्होंने विभिन्न संस्थानों और देशों में वायरस के सैकड़ों जीनोम अनुक्रमों को साझा किया — एक ऐसा अनुसंधान जो कोविड-19 के अनेक सुरक्षित और प्रभावी टीकों की रिकॉर्ड समय में खोज के लिए अपरिहार्य था। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुमोदित किए जाने वाले टीकों में से सबसे पहला तुर्की में पैदा हुए एक डॉक्टर के प्रयासों से बना, जो जर्मनी में पले-बढ़े, और जिन्होंने एक यूरोपीय दवा कंपनी की सह-स्थापना की, और उस कंपनी ने टीके का उत्पादन करने के लिए एक अमेरिकी कंपनी के साथ भागीदारी की।

आज अमेरिका के सहयोगी और साझेदार शायद मेरे शब्दों को सुनकर कह रहे हों, "हमें यह जानने की आवश्यकता है कि हम आपसे क्या उम्मीद कर सकते हैं।" क्योंकि जैसा कि मैंने कहा, पिछले कुछ वर्षों में कुछ हद तक भरोसा कम हुआ है।

इसलिए मैं यहां स्पष्ट करना चाहूंगा कि अमेरिका अपने सहयोगी देशों और साझेदारों को क्या वायदा कर सकता है।

जब हमारे सहयोगी देश बोझ में अपनी उचित साझेदारी करते हैं, तो वे निर्णय प्रक्रिया में पर्याप्त हिस्सेदारी की भी उम्मीद करते हैं। हम इस बात को सुनिश्चित करेंगे। यह हमारे मित्रों से समय रहते और नियमित मशविरा करने से शुरू होता है। यह बाइडेन-हैरिस प्रशासन में विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और यह एक परिवर्तन है जिसे हमारे सहयोगी पहले से देख और सराह रहे हैं।

हम अपने सहयोगियों के अधिक क्षमता विकसित करने के प्रयासों को एक पूंजी के रूप में लेते हैं, ख़तरे के रूप में नहीं। मज़बूत सहयोगियों से मज़बूत गठबंधन बनता है़। और अब जबकि अमेरिका मेरे द्वारा आज यहां रेखांकित ख़तरों के मुक़ाबले के लिए अपनी क्षमताएं विकसित कर रहा है, हम ये सुनिश्चित करेंगे कि उनका हमारे गठबंधनों के साथ सामंजस्य हो — और वे हमारे सहयोगियों की सुरक्षा को मज़बूत करने में योगदान दें। हम बदले में अपने सभी सहयोगी देशों से भी यही चाहेंगे।

अमेरिका अपने सहयोगियों को चीन के संदर्भ में "हमें या उन्हें" चुनने के लिए मजबूर नहीं करेगा। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बीजिंग का दबाव डालने वाला व्यवहार हमारी सामूहिक सुरक्षा और समृद्धि को ख़तरे में डालता है, और यह कि उसकी गतिविधियां अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के नियमों और उन मूल्यों को कमज़ोर बनाती हैं जिन्हें हम और हमारे सहयोगी साझा करते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि विभिन्न देश जहां संभव है वहां चीन के साथ काम नहीं कर सकते हैं, उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य सुरक्षा जैसी चुनौतियों के संबंध में।

हम जानते हैं कि हमारे सहयोगियों के चीन के साथ जटिल रिश्ते हैं जो हमेशा पूरी तरह से सही नहीं रहते हैं। लेकिन हमें इन चुनौतियों का मिलकर सामना करने की आवश्यकता है। इसका मतलब है प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में अंतर —  जिनका कि बीजिंग अनुचित दबाव डालने के लिए उपयोग कर रहा है — को समाप्त करने के लिए अपने सहयोगी देशों के साथ मिलकर काम करना। हम नवाचार पर भरोसा करेंगे, अल्टीमेटम पर नहीं। क्योंकि अगर हम अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए अपनी सकारात्मक दृष्टि को वास्तविक बनाने का एकजुट प्रयास करें — अगर हम स्वतंत्र और खुली प्रणाली के लिए एकजुट खड़े हों जोकि हमें पता है कि मानव क्षमता, गरिमा और कनेक्शन के लिए सर्वोत्तम स्थिति प्रदान करता है — तो हमें विश्वास है कि हम चीन या किसी को भी, किसी भी क्षेत्र में पीछे छोड़ सकते हैं।

हम हमेशा पूरा प्रयास करेंगे, लेकिन जब हमारे सहयोगी प्रयास करेंगे तो हम उसे भी स्वीकार करेंगे। और मैं स्पष्ट कर देना चाहूंगा: यह अक्सर एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, विशेष रूप से ट्रांसअटलांटिक संबंधों में। हम जानते हैं कि हमारे कई नैटो सहयोगी देशों ने रक्षा निवेश बढ़ाने की दिशा में कई प्रगति की है, जिसमें 2024 तक रक्षा व्यय पर जीडीपी का दो प्रतिशत खर्च करने के वेल्स संकल्प को पूरा करने की दिशा में प्रगति भी शामिल है। इन प्रतिबद्धताओं का पूर्ण कार्यान्वयन महत्वपूर्ण है। लेकिन हम बोझ के बंटवारे के बारे में अधिक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता को भी समझते हैं। कोई भी संख्या हमारी सामूहिक सुरक्षा और हितों की रक्षा में किसी देश के योगदान के साथ पूर्ण न्याय नहीं कर सकती है, विशेष रूप से एक ऐसी दुनिया में जहां अधिकाधिक बढ़ते ख़तरों का सैन्य बल से सामना नहीं किया जा सकता है। हमें ये स्वीकार करना चाहिए कि सहयोगी देशों की अपनी अलग-अलग क्षमताएं और तुलनात्मक ताक़त हैं, वे अलग-अलग तरीक़ों से अपने हिस्से का बोझ उठाएंगे। हालांकि, इसका मतलब ये नहीं है कि हम अपने लिए निर्धारित लक्ष्यों को छोड़ दें या कम कर दें। वास्तव में, हमारे समक्ष मौजूद साझा ख़तरों के मद्देनज़र हमसे और अधिक प्रयास करने की अपेक्षा की जाती है।

हमें एक दूसरे के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करते हुए कठिन विमर्श करने में — और यहां तक कि असहमति जताने में भी — सक्षम होना चाहिए। हाल के वर्षों में अनेकों बार, ऐसा लगा कि अमेरिका यह भूल रहा हो कि उसके मित्र कौन हैं। ख़ैर, वो स्थिति पहले ही बदल चुकी है।

अमेरिका अपनी शक्ति के उपयोग, विशेष रूप से विदेशों में संघर्ष से निपटने के साधन के रूप में हमारी सैन्य शक्ति के इस्तेमाल को लेकर विवेक से काम लेगा। हम अपनी सैद्धांतिक महत्वाकांक्षाओं और उन्हें हासिल करने के लिए उठाए जाने वाले जोख़िमों के बीच असंतुलन से बचेंगे, विशेषकर इसलिए भी कि जब हम अपनी शक्ति को अत्यधिक फैलाते हैं, तो हम अन्य चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करने की अपनी क्षमताओं को बाधित करते हैं, जोकि शायद अमेरिकी जनता के जीवन पर सबसे बड़ा प्रभाव डालने वाली साबित हों।

आख़िर में, हमारे कुछ सहयोगी देशों को चिंता है कि क्या उनकी सुरक्षा के लिए हमारी प्रतिबद्धता स्थाई है। वे हमें "अमेरिका वापस आ गया है" कहता पाते हैं और सवाल करते हैं – कब तक के लिए?

ये एक उचित सवाल है। तो ये है इसका जवाब।

कोई कारण है कि अमेरिकी लोगों का बहुमत — जिसमें दोनों ही राजनीतिक दलों के समर्थक शामिल हैं — हमारे गठबंधनों का समर्थन करता हैं, भले ही कई अन्य मुद्दों पर पार्टी मत के अनुसार लोगों की राय विभाजित हो। इसी कारण से कांग्रेस में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों ही दलों के सदस्यों ने हमारे सहयोगियों को लगातार आश्वस्त किया है कि हमारी प्रतिबद्धताएं पक्की हैं। इसका कारण यह है कि हम अपने गठबंधनों को बोझ के रूप में नहीं देखते हैं, बल्कि एक ऐसी दुनिया को आकार देने में दूसरों की सहभागिता के रूप में देखते हैं जोकि हमारे हितों और हमारे मूल्यों को दर्शाती है।

लेकिन इस समर्थन को मज़बूत बनाए रखने के लिए, विश्व मंच पर अमेरिका का प्रतिनिधित्व करने का सौभाग्य प्राप्त हमारे जैसे लोगों को ये सुनिश्चित करना होगा कि हमारे गठबंधन अमेरिकी लोगों को लाभांवित करते हों। हम इस बात से नज़र नहीं हटा सकते।

हमें न केवल यह दिखाना चाहिए कि हमारे गठबंधन किससे बचाव के लिए बने हैं, बल्कि यह भी कि वे किन उद्देश्यों के लिए खड़े हैं, जैसे कि हर जगह सभी लोगों को ये अधिकार हो कि उनके साथ गरिमापूर्ण व्यवहार और उनकी मौलिक स्वतंत्रताओं का सम्मान किया जाए। सिर्फ इसलिए कि हम अपनी विदेश नीति को ऐसा बनाते हैं कि वह दुनिया को प्रतिबिंबित करे, इसका मतलब यह नहीं है कि हमें दुनिया को वो रूप देने की कोशिश बंद कर देनी चाहिए, जैसी कि दुनिया होनी चाहिए — एक ऐसी दुनिया जो अधिक सुरक्षित, अधिक शांतिपूर्ण, अधिक न्यायपूर्ण, अधिक न्यायसंगत हो, एक ऐसी दुनिया जहां बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था हो, अधिक मज़बूत लोकतंत्र हों, और अधिकाधिक लोगों के लिए अधिक अवसर हों।

संक्षेप में, हमें एक सकारात्मक दृष्टि रखने की आवश्यकता है जो लोगों को साझा हितों के लिए एक साथ ला सके। यह एक ऐसी चीज़ है जोकि हमारे विरोधी नहीं दे सकते। यह हमारी सबसे बड़ी शक्तियों में से एक है।

यहीं भरोसेमंद सहयोगी होने का हमारा हित, हमारे नागरिकों की ज़रूरतों को पूरा करने से बंधा है। हम एक ऐसी विदेशी नीति नहीं बना सकते हैं जो प्रभावी गठबंधनों को बनाए बिना अमेरिकी लोगों के फ़ायदे की हो। और हम यह दिखाए बिना कि कैसे प्रभावी गठबंधन, अमेरिकी लोगों के हित में है, उन्हें बनाए नहीं रख सकते।

सत्तर साल पहले, न्यू जर्सी के फ़ोर्ट डिक्स में प्रशिक्षण पा रहे एक अमेरिकी सैनिक ने ड्वाइट डी. आइज़नहॉवर, जो तब यूरोप में मित्र देशों की सेना के पहले सर्वोच्च कमांडर के रूप में तैनात थे, को पत्र लिखा था। अपने पत्र में, सैनिक ने आइज़नहॉवर से पूछा था कि क्या उसकी सेवा में, उसी के शब्दों में, "मारो या मर जाओ" के अलावा भी कुछ है।

आइज़नहॉवर एक अनुभवी यथार्थवादी थे। उन्होंने युद्ध की तबाही को क़रीब से देखा था। वह अच्छी तरह जानते थे कि सहयोगियों की रक्षा के लिए अमेरिकियों के जीवन को ख़तरे में डालने के जीवन और मौत से जुड़े क्या परिणाम हैं। फिर भी उन्हें विश्वास था, जैसा कि उन्होंने उस सैनिक को जवाबी पत्र में लिखा, उन्हीं के शब्दों में, "सच्चे मानवीय उद्देश्यों में केवल ताक़तवर के बच जाने से कहीं बड़ी समृद्ध और रचनात्मक बातें शामिल होती हैं।"

उन्होंने लिखा कि अमेरिका और उसके सहयोगियों को साझा मूल्यों पर आधारित एक व्यवस्था के निर्माण के लिए मिलकर काम करना होगा। और ये शब्द अमेरिका में हमारे रोज़मर्रा के जीवन को दिशा देने वाले मूल्यों से इतने अलग नहीं थे — जैसा कि आइज़नहॉवर ने लिखा था, "अनेक समस्याएं जो लगातार हमारे सामने आती रहती हैं, उनके समाधान की शालीनता से, निष्पक्षता से और न्यायसम्मत तरीक़े से कोशिश की जानी चाहिए।"

इसका मतलब दुनिया की हर समस्या को हल करने की कोशिश नहीं है। बल्कि इसका मतलब ये है कि जब हमें किसी समस्या का समाधान करना हो, तो हम अपने मूल्यों को नहीं भूलें, जो हमारी ताक़त होने के साथ-साथ, हमारी विनम्रता का स्रोत भी हैं। आइज़नहॉवर ने सैनिक से कहा कि उन्हें उम्मीद है उनके शब्द उसे "कुछ हद तक आशा और विश्वास" प्रदान करेंगे।

आइज़नहॉवर उन अनेक चुनौतियों की कल्पना भी नहीं कर सकते थे, जिनका आज हम सामना कर रहे हैं। लेकिन वो जानते थे कि जो भी नई चुनौतियां सामने आएंगी, उनका मुक़ाबला हम अपने उन साझेदारों के साथ मिलकर करना चाहेंगे, जिनके और हमारे साझा मूल्य हैं।

पिछला वर्ष हमारे राष्ट्रों के इतिहास में सबसे चुनौतीपूर्ण रहा है, और अभी हम संकट से उबर नहीं पाए हैं — भले ही हम आशा की वास्तविक किरण देख रहे हों। लेकिन सहयोगियों और साझेदारों के साथ हमारा सहयोग हमें काफी हद तक आशावाद और विश्वास प्रदान कर रहा है। यह हमें आगे का रास्ता दिखाता है: एकजुट, अपने साझा मूल्यों पर आधारित, और न केवल हमारे गठबंधनों और साझेदारियों की पुनर्स्थापना के लिए, बल्कि उन्हें पहले से बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध। यदि हम ऐसा करते हैं, तो ऐसी कोई चुनौती नहीं जिससे हम निपट नहीं सकते हैं और निपटेंगे नहीं। आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।


मूल स्रोत: https://www.state.gov/reaffirming-and-reimagining-americas-alliances/

अस्वीकरण: यह अनुवाद शिष्टाचार के रूप में प्रदान किया गया है और केवल मूल अंग्रेज़ी स्रोत को ही आधिकारिक माना जाना चाहिए।


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